टी. बी. और गर्भावस्था  ( Pregnancy )

टी बी -यानि Tuberculosis  की बीमारी एक जीवाणु Mycobacterium Tuberculosis  की वजह से होती है। 

टी बी आज भी विश्व की सबसे जानलेवा बीमारियों में से एक है। 

40 लाख से भी ज़्यादा स्त्रियाँ हर साल इस बीमारी का शिकार बनती हैं और कई लाख मौतें भी होती हैं। 

गर्भवती महिलाओं में सबसे ज़्यादा पायी जाने वाली टी बी फेफड़ों ( lungs ) की है। 

इसके अलावा हड्डी (bones ), गुर्दा (kidney ), पेट ( abdominal ), lymph nodes , meninges ( part of brain ), यहां भी टी बी हो सकता है।

अगर किसी महिला को टी बी है और वह गर्भवती हो जाती है तो यह देखा गया है कि टी बी की बीमारी उससे अप्रभावित रहती है।

 टी बी का प्रेगनेंसी पर असर 

अगर सही समय पर निदान (diagnosis ) हो जाए और संपूर्ण उपचार किया जाये तो टी बी से गर्भवती महिला और शिशु दोनों को ही कुछ भी हानि नहीं होती। 

यदि ऐसा ना हो पाए या इलाज को बीच में ही छोड़ दिया जाये तो कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

-गर्भपात ( abortion )

-पेट में ही बच्चे की मृत्यु ( intra uterine fetal death )

-गर्भ का ठीक से ना बढ़ना ( fetal growth restriction )

-नवजात शिशु की मृत्यु ( perinatal mortality )

अगर महिला का खान पान समय पर और पौष्टिक ना हो या उसमें खून की कमी हो तो उसे कई तरह की परेशानियाँ हो सकती हैं।

प्रेगनेंसी का टी बी पर असर

अगर किसी महिला को टी बी है और वह गर्भवती हो जाती है तो यह देखा गया है कि टी बी की बीमारी उससे अप्रभावित रहती है।

प्रेगनेंसी में टी बी के symptoms

प्रेगनेंसी और टी बी के लक्षण बहुत कुछ मिलते जुलते हो सकते हैं और यह जानना मुश्किल हो सकता है कि महिला को क्या हो रहा है। जैसे कि

-उबकाई या उल्टी ( nausea / vomiting )

-वज़न का कम होना

-बुखार जैसा लगना

-हृदय की धड़कन का तेज़ होना ( tachycardia )

टी बी की जाँचें

-मांटू टेस्ट ( Mantoux test )

-छाती का एक्सरे ( Chest  X- Ray )

-बलगम की जाँच ( sputum examination )

-Biopsy , FNAC

-फेफड़ों ,पेट और हृदय के आस पास के पानी की जाँच ( Fluid from pleural, ascitic or pericardial effusion )

-रीढ़ की हड्डी के पानी की जाँच ( lumbar puncture for TB meningitis )

-दूरबीन द्वारा फेफड़ों या अमाशय को देखना

-ELISA & PCR  test

टी बी का ट्रीटमेंट

टी बी की चार मुख्य दवाएं इस प्रकार हैं

– Isoniazid

-Rifampicin

-Pyrazinamide

-Ethambutol

इन दवाओं को छः महीने तक दिया जाता है

WHO ( World Health Organisation ), DOTS ( Directly Observed Treatment, Short Course ) को मान्यता देता है

ये सभी दवाएँ गर्भावस्था में देना सुरक्षित है।

जैसे ही टी बी का निदान हो , डॉक्टर की सलाह से इन दवाओं को शुरू कर देना चाहिए।

Drug Resistant टी बी

कभी कभी टी बी के जीवाणु पर इन मुख्य दवाओं का असर नहीं होता।  इस समय कुछ अलग दवाएं इस्तेमाल करनी होती  हैं ।  पर यह second line treatment गर्भ में पल रहे शिशु के लिए सुरक्षित नहीं है।  ऐसे समय अगर गर्भवती स्त्री चाहे तो अपने डॉक्टर की सलाह से समय रहते ,  गर्भपात ( Abortion ) के उपाय को चुन सकती है। 

दवाओं के नाम इस प्रकार से हैं।

-Kanamycin

-Ofloxacin

-Ethionmide

-Cycloserine

-Capreomycin

प्रसव ( Delivery ) के दौरान क्या करें

टी बी ग्रस्त महिला की प्रसव के दौरान देखभाल वैसे ही की जाती है जैसे की किसी भी दूसरी महिला की करेंगे।

नवजात शिशु की देखभाल

यह इस बात पर निर्भर करता है कि माँ की टी बी कितने ज़ोर पर है।  बलगम में टी बी के जीवाणु उपस्थित हैं या नहीं।  क्या माँ को drug resistant  टी बी है।

नवजात शिशु की कुछ जाँचे  भी करनी पड़ सकती हैं जैसे कि –

-Tuberculin test

– छाती का x -ray

इन सब जाँचों  के आधार पर शिशु रोग तज्ञ ( Pediatrician ) यह निर्णय लेते हैं  कि शिशु को दवा दी जानी चाहिये या नहीं।

BCG Vaccine ( टीकाकरण ) करने का निर्णय भी जाँचों  की रिपोर्ट के आधार पर लिया जाता है।

टी बी और स्तनपान

अगर माँ की टी बी Drug Resistant है , तब स्तनपान करना वर्जित Contraindicated ) है।

बाकी सब तरह की टी बी में माँ को स्तनपान करना अनिवार्य ( Compulsory ) है।

यह हो सकता है कि शिशु को भी कुछ दवायें  देने की ज़रुरत पड़े जैसे कि Isoniazid  या Pyridoxine , यह दवाएँ  शिशु को सुरक्षित रखती हैं।

टी बी और गर्भ निरोध

अगर महिला टी बी की दवाइयाँ ले रही होती है तब गर्भ -निरोधक गोलियाँ उसे सुरक्षित नहीं रख सकतीं। ऐसे में गर्भ निरोध के अन्य साधनों जैसे कंडोम का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है।

HIV बाधित गर्भवती महिला और टी बी

अगर महिला HIV बाधित है तो उसे टी बी होने की संभावना एक आम महिला के मुकाबले दस गुना ज़्यादा है।  

यहाँ  महिला को जान का खतरा भी ज़्यादा है।

बुरे परिणाम बच्चे पर भी हो सकते हैं। जैसे –

-उसका समय से पहले जन्म लेना ( Prematurity )

-कमज़ोर पैदा होना  ( IUGR – Intra Uterine Growth Retardation )

-शिशु का HIV  बाधित हो जाना

जन्मजात ( Congenital ) टी बी

नवजात शिशु भी टी बी ग्रस्त हो सकता है।

यह बीमारी उसे अवल नाल ( Umbilical  Cord ) के ज़रिये माँ  के खून से मिल सकती है।

गर्भ में शिशु जिस तरल पदार्थ में तैरता है ( Amniotic Fluid ), वह भी जीवाणु युक्त हो सकता है और शिशु को संक्रमित कर सकता है।

जन्म के बाद आने वाली अंवल नाल ( Placenta and Cord  ) को जाँच के लिए भेजना चाहिए ताकि संक्रमण का पता कर सकें।अगर माँ को टी बी है तो जन्म के बाद शिशु की कुछ जाँचे की जाती हैं ताकि पता चल सके की वह संक्रमित है या नहीं।

जन्म के दूसरे या तीसरे हफ्ते से टी बी के लक्षण सामने आने लगते हैं। जैसे कि –

-बच्चे का ठीक से दूध न पीना

-बुखार-कमज़ोरी-चिड़चिड़ापन-कान का बहना-त्वचा पर चकत्ते

-साँस लेने में तकलीफ़

अगर शिशु में यह लक्षण दिखाई दें और टी बी का निदान करना आवश्यक समझा जाये तो निम्नलिखित जाँचो  को किया जा सकता है –

– Mantoux  test

-छाती का एक्स रे ( Chest X -Ray )

– फेफड़ों और अमाशय के पानी की जाँच ( Broncho-alveolar and Gastric Lavage )

निदान होने के पश्चात उचित उपचार तुरंत शुरू कर देना चाहिए।

अगर समय रहते टी बी का निदान और  सम्पूर्ण  उपचार किया जाए तो Tuberculosis  यानि  कि  टी बी भी अन्य दूसरी बीमारियों की तरह पूरी तरह से ठीक हो जाती है। 

सतर्क रहें सुरक्षित रहें।

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